आठ साल में दुष्कर्म के 2.66 लाख मामले, 2018 में सिर्फ 27 प्रतिशत को ही सजा मिली

(नई दिल्ली) उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म और अमानवीय व्यवहार ने देश में फिर दुष्कर्म के खिलाफ आवाज़ खड़ी कर दी है। 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद से लगभग हर साल ऐसी हैवानियत का कोई ना मामला देश को देखना पड़ रहा है। क्राइम इन इंडिया-2019 नाम की रिपोर्ट के अनुसार, देश में महिलाओं के प्रति अपराध 7.3% (पिछले वर्ष की तुलना में) तक बढ़ चुके हैं। 2019 में रोजाना औसतन दुष्कर्म के 88 मामले दर्ज किए गए। वहीं सालभर में 32,033 दुष्कर्म केस दर्ज किए गए। इनमें 11 फीसदी मामले दलित बालिकाओं और महिलाओं से जुड़े थे।

रिपोर्ट के अनुसार- 3500 मामलों में पीड़ित दलित समुदायों से थीं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार 2012 से लेकर 2019 तक देश भर में दुष्कर्म के लगभग 2.66 लाख मामले दर्ज किए गए। पिछले साल सर्वाधिक छह हजार दुष्कर्म के मामले राजस्थान में व 3,065 मामले उत्तरप्रदेश में रिपोर्ट किए गए। ना सिर्फ मामले, बल्कि सजा की दर भी चौंकाती है। दुष्कर्म के इन मामलों में सजा की दर अभी भी लगभग 27 प्रतिशत ही है। ऐसा तब है जब इन मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें तक बनाई गई हैं।

लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया है कि 31 मार्च 2019 तक देशभर में 581 फास्ट ट्रैक कोर्ट्स गठित की जा चुकी हैं। बावजूद इसके पिछले दस सालों में दुष्कर्म के मामले 31% बढ़ गए हैं। यह स्थिति तब है जबकि देश में दुष्कर्म से जुड़े कानून में लगातार बदलाव हो रहा है। दंड प्रावधान पहले से बेहद सख्त हुए हैं। अधिकांश मामलों में फांसी की सजा तका का प्रावधान किया गया है। इसके बावजूद बच्चियों के प्रति हैवानियत बरकरार है। आज जानिए, उन बर्बर घटनाओं को जिनके खिलाफ देश उठ खड़ा हुआ और कानून को बदलना पड़ा।

फूलमोनी दासी रेप केस

मामला 1889 का है। 10 साल की बंगाली लड़की फूलमोनी दासी, जिसकी शादी दोगुने उम्र के हरि मोहन मैती से हुई थी। पति द्वारा शारीरिक संबंध बनाने के दौरान मौत।

कार्रवाई क्या हुई थी: केस कलकत्ता सेशन कोर्ट में चला। तब शादी की वैध उम्र 10 साल थी। उस समय पत्नी के साथ जबरन संबंध दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता था। इसलिए धारा 338 के तहत सिर्फ शारीरिक नुकसान का केस बना। पति को केवल 12 महीने की सजा हुई थी। इसे लेकर विरोध-प्रदर्शन हुए।

बदला क्या?: करीब साल भर बाद वायसराय लार्ड लैंसडाउन ने प्रस्ताव पारित किया। सहमति के साथ संबंध की उम्र 10 से 12 साल हुई। इससे कम उम्र की लड़की से संबंध बनाने को दुष्कर्म माना गया।

मथुरा केस: महाराष्ट्र के चंद्रपुर की रहने वाली सोलह साल की आदिवासी लड़की मथुरा के साथ 26 मार्च 1972 को पुलिस थाने में दो कांस्टेबल ने दुष्कर्म किया था।

कार्रवाई क्या हुई थी: बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपितों को दोषी पाया, लेकिन 1979 में सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के तर्क के आधार पर आरोपितों को निर्दोष करार दे दिया। तर्क दिया गया था कि मथुरा ने ना विरोध किया था, ना ही उस पर शारीरिक चोट के कोई निशान थे। उसे ‘संबंधों का आदी’ माना गया था।

बदला क्या?: आरोपी को साबित करना होगा कि वह निर्दोष है। पहले पीड़िता को साबित करना पड़ता था कि दुष्कर्म हुआ है। हिरासत में दुष्कर्म की सजा कम से कम 7 साल तय हुई। बंद कमरे में सुनवाई का प्रावधान।

भंवरी देवी रेप केस: 22 सितंबर 1992 को राजस्थान के भटेरी गांव में ये घटना हुई। दलित सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी से सामूहिक दुष्कर्म किया गया था।

कार्रवाई क्या हुई: मामले में गंभीर लापरवाहियां हुईं। समय पर मेडिकल तक नहीं हुआ। मामला सीबीआई के पास पहुंचा। 1995 में जिला अदालत ने अभियुक्तों को रिहा कर दिया। बाद में सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की। जहां 10 वर्ष बाद तक सिर्फ एक बार सुनवाई हुई। 2011 में पूर्व मंत्री की गिरफ्तारी हुई।

बदला क्या?: 1997 में विशाखा गाइडलाइंस आईं। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश बनाए। यह नियम हर कार्यस्थल पर लागू होता है।

निर्भया केस: 16 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में पैरा मेडिकल छात्रा के साथ 6 लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। 13 दिन बाद गंभीर अंदरूनी चोटों के चलते निर्भया की मौत हो गई।

कार्रवाई क्या हुई: एक आरोपी रामसिंह ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। सबसे बर्बर आरोपी नाबालिग था। तीन साल बाद सुधार केन्द्र से छोड़ दिया गया। चार आरोपियों को 20 मार्च 2020 को फांसी दे दी गई।

बदला क्या?: 2013 में क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस आया। दुष्कर्मियों के लिए फांसी का प्रावधान हुआ। 2015 में जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हुआ। 16 साल या उससे अधिक उम्र के किशोर को जघन्य अपराध पर एक वयस्क की तरह केस चलाने का कानून बना।
कठुआ दुष्कर्म केस: 10 जनवरी 2018 को जम्मू के कठुआ में 8 साल की बच्ची को अगवा करने के बाद एक मंदिर में बंधक बनाकर सामूहिक दुष्कर्म किया गया। 13 जनवरी को हत्या कर दी गई।

कार्रवाई क्या हुई: 10 जून 2019 को पंजाब की एक विशेष अदालत ने 6 लोगों को दोषी करार दिया। इसमें तीन पुलिस कर्मी भी शामिल थे। गैर पुलिस कर्मियों को उम्र कैद और पुलिस कर्मियों को 5-5 साल की सजा दी गई।

बदला क्या?: आईपीसी की धारा-376 एबी के तहत अगर 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म होता है तो दोषी को कम से कम 20 साल सजा और फांसी तक की सजा हो सकती है। सामूहिक दुष्कर्म की स्थिति में भी उम्रकैद और फांसी का प्रावधान। ट्रायल 2 माह में पूरा करना होगा।

हैदराबाद सामूहिक दुष्कर्म: नवंबर 2019 को हैदराबाद के नजदीक 26 वर्षीय वेटरिनरी डॉक्टर की सामूहिक दुष्कर्म के बाद जलाकर हत्या कर दी गई। दो दिन बाद 28 नवंबर को उसकी जली हुई लाश मिली।

कार्रवाई क्या हुई: मामले को लेकर जनता में बेहद गुस्सा था। इसी बीच, चारों आरोपी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए। एनकाउंटर की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी गठित की है।

बदला क्या?: विधानसभा द्वारा आंध्र प्रदेश दिशा बिल 2019 (एपी क्रिमनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट 2019) पास। इसके तहत 21 दिन के अंदर दुष्कर्म और गैंगरेप के मामलों का ट्रायल पूरा करना होगा। आरोपियों को फांसी की सजा तक देने का प्रावधान। मंजूरी के लिए बिल राष्ट्रपति को भेजा।



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न तस्वीर बदली, न हालात : तस्वीर 1980 में मथुरा रेप केस में प्रदर्शन के दौरान की है। (फाइल)


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