सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा, ‘जो लोग मास्क नहीं पहन रहे हैं, वे दूसरे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। मास्क अनिवार्य है। इसे न लगाने पर कानून के अनुसार सजा दी जानी चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच राजकोट के कोरोना अस्पताल में आग लगने की घटना से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी।
तभी गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने अहमदाबाद हाईकोर्ट के बुधवार को जारी आदेश का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘हाईकोर्ट ने असंगत आदेश दिया है। इसमें मास्क न लगाने वालों से सामुदायिक केंद्रों में कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा कराने का निर्देश दिया है। इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने भी मेहता की बात पर सहमति जताई। शीर्ष अदालत ने
कहा, ‘लोगों को मास्क लगाना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने जो आदेश जारी किया वो इसका इलाज नहीं है। हाईकोर्ट को समझना चाहिए कि कभी-कभी इलाज, रोकथाम से ज्यादा खतरनाक हो जाता है। लोगों को सामुदायिक केंद्रों में भेजने की तुलना में मास्क न पहनने से नुकसान कम है। मास्क न पहनने की समस्या को युद्धस्तर पर हल करना चाहिए।’ इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर तुरंत रोक लगा दी।
यह था पूरा आदेश हाईकोर्ट का
गुजरात हाईकोर्ट ने कहा था कि सार्वजनिक जगहों पर मास्क न लगाने वालों से सजा के रूप में सामुदायिक केंद्रों में काम कराया जाए। उनसे 5 से 15 दिनों तक रोज 4 से 6 घंटे तक मरीजों की सेवा कराई जाए। यह सजा बिना मास्क घूमते पाए जाने पर लगने वाले 1 हजार रुपए जुर्माने से अतिरिक्त होगी। इस आदेश को गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
जस्टिस भूषण ने कहा- लोग सभाएं कर रहे हैं, उसके लिए जिम्मेदार कौन?
सुनवाई के दौरान जस्टिस भूषण ने कहा, ‘लोग सभाएं भी आयोजित कर रहे हैं। इसके लिए जिम्मेदार कौन है?’ वहीं जस्टिस शाह ने कहा, ‘एक राज्य ने पत्रकार वार्ता की थी। इसमें कहा था कि सभा या आयोजन के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं है। क्या ये सच है?’ इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा, ‘मैं यहां केंद्र और गुजरात सरकार की पैरवी कर रहा हूं। दूसरे राज्यों के बारे में चर्चा के लिए यह समय उचित नहीं है।’
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